“न्यायपालिका में भ्रष्टाचार या अवहेलना न्यायालय की”?
न्याय का अर्थ है नीति-संगत बात अर्थात उचित अनुचित का विवेक | वात्स्यायन ने न्याय सूत्र में लिखा है- “ प्रमाणैर्थपरीक्षणं न्यायः “ अर्थात प्रमाणों द्वारा अर्थ का परिक्षण ही न्याय है | भारतीय संविधान ने प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्रदान किये हैं चाहे वह कोई आम व्यक्ति हो या कोई न्यायाधीश | भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में भी तथ्यों व प्रमाणों की जांच किये बिना किसी को दोषी नहीं माना जाता है | परन्तु यदि व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो नीति कहती है कि अपराधी को दण्ड देने में उसे रियायत तथा विलम्ब नहीं करना चाहिए | 23 जनवरी 2017 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चिन्नास्वामी स्वामीनाथन कर्नन प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र लिखकर न्यायपालिका में हो रहे भ्रष्टाचार की तरफ उनका ध्यानाकर्षण करवाते है | इस पत्र में उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के 20 जजों के नाम सहित 3 अन्य अधिकारिओं के नाम का उल्लेख करते हुए जस्टिस कर्नन इन सभी पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाते हैं | वे लिखते हैं कि विमुद्रीकरण (नोटबंदी) के बाद देश में बहुत सा अवैद्य-धन पकड़ा गया है | इससे भ्रष्टाचार का