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* आजकल देश के तथाकथित बुद्धजीवी अदालतों के दखल को गलत मानते हैं * एक विश्लेषण- उत्कर्ष श्रीवास्तव

वास्तव में देश का दुर्भाग्य है कि अदालतें कार्यपालिका के द्वारा किये जा रहे कार्यों को संज्ञान में लेकर बार बार दखल दे रहीं हैं | अब प्रश्न यह उठता है कि यदि जनता के प्रतिनिधि अपने कार्यों को ठीक से ना करें तो जनता कहाँ जाए ? न्यायपालिका का कार्य देश के संविधान अनुसार कानून की सही व्याख्या कर जनता को सही निर्णय देना है | यह सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में मूक पशुओं पर किसी भी प्रकार का अत्याचार करना पाप माना गया है | एक तरफ़ केंद्र सरकार भारतीय संस्कृति और परंपरा की दुहाई देती फिरती है वहीं दूसरी तरफ़ जल्लीकट्टू.(सांड को उकसाकर लडवाने का क्रूर खेल,जिसमें सांड के विशेष अंगों पर लाल मिर्च व पेट्रोल लगाकर उन्हे भड़काया जाता है ) जैसे खेल पर से प्रतिबंध हटाकर अपने दोहरे चरित्र को उजागर करती है | गोमांस के मुद्दे पर हो हल्ला करने वाले यदि जल्लीकट्टू जैसे क्रूर व भयानक खेल पर मनोरंजन के नाम पर मौन रहेंगे तो मजबूरन अदालतों को अपनी दखल देनी ही पडेगी | 

https://youtu.be/0EHof3pXp38