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देश, महिला व संस्कृति की सुरक्षा सबकुछ फेसबुक और व्हाट्स-एप से....

कुछ वर्षों पहले दिल्ली में एक भयावह घटना घटी थी - “निर्भया काण्ड” जिसने हमें , हमारे देश और साथ ही साथ मानवता को भी शर्मसार कर दिया था। कुछ महीनों पहले एक और भयावह घटना घटी उत्तर प्रदेश में ,   जिसमें एक परिवार के साथ हाइवे पर निर्ममता के साथ समूहिक बलात्कार हुआ। भूले तो बिलकुल नहीं होंगे  ॥ .......याद भी होगा लेकिन.....वर्तमान में इन बातों को करने का औचित्य समझ में नही आ रहा होगा , शायद कुछ अटपटा सा लग रहा हो..।   .बस इतना पूछना है कि - महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी पर मचे बवाल के बाद अंजाम क्या हुआ ?    निर्भया फंड क्यों और किसके लिए बना ?  बनने के बाद उसका उपयोग कहाँ हो रहा है ?   उत्तर प्रदेश में माँ बेटी के साथ हुई निर्मम घटना पर पुलिस ने क्या किया ? सरकार ने उस घटना के बाद क्या-क्या कदम उठाए ? उस घटना का दंश झेल रहे परिवार की स्थिति आज क्या है ? समय के साथ शायद ये मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए....अब ये मुद्दे फेसबुक पर भी नदारद हैं और व्हाट्स एप के मैसेजों में भी इनके लिए कोई स्थान नहीं है। शायद इसका कारण यह है कि आज की युवा पीढ़ी को पुरानी बातों में अब मसाला नजर नह

" इन्टरनेट से पैदा हुये देशभक्त और उनकी आनलाइन देशभक्ति "

फेसबुक और वाट्सएप पर कमेंट कर "देशभक्ति" दिखाने वालों की आज कमी नही है…………सोशल मीडिया पर गाली देकर देशभक्त बनने की होड़ सी लगी है ,जो जितना गरियाये उतना बड़ा देशभक्त ,  मोबाईल हाथ मे लेकर कोई भी क्रान्तिकारी बना फ़िरता है.............. दूसरों की पोस्ट कापी करके स्वयं को क्रांतिकारी महसूस करने वाले तथाकथित देशभक्त बस नेट पर ही सक्रीय रहते हैं……  सोशल मीडिया पर लिखना आसान है , यथार्थ में करना हो तब समझ में आएगा, इंटरनेट पर बैठकर यदि देशभक्ति जगने लगे और लंबी चौडी बातें पोस्ट करने से सब सुधरने लगें तो हो चुका    !!!!!  यदि फेसबुक/वाट्स एप पर गरियाना देशभक्ति है तो फ़िर कोई बात ही नही रही………ऐसे फेसबुकिया देशभक्तों को हम कुछ कह ना पाएँगे ||   ये तो वही बात हुई - "जो फोटो को लाईक नही किया उसके साथ बुरा होगा ", "जो सच्चा देशभक्त है तुरंत लाईक करेगा" , " जो हिंदू है जय श्रीराम लिखे नही तो हिंदू नही" ………धन्य है सोशल मीडिया पर पैदा होने वाले राष्ट्रभक्त और धन्य है उनकी आनलाइन देशभक्ति |

* आजकल देश के तथाकथित बुद्धजीवी अदालतों के दखल को गलत मानते हैं * एक विश्लेषण- उत्कर्ष श्रीवास्तव

वास्तव में देश का दुर्भाग्य है कि अदालतें कार्यपालिका के द्वारा किये जा रहे कार्यों को संज्ञान में लेकर बार बार दखल दे रहीं हैं | अब प्रश्न यह उठता है कि यदि जनता के प्रतिनिधि अपने कार्यों को ठीक से ना करें तो जनता कहाँ जाए ? न्यायपालिका का कार्य देश के संविधान अनुसार कानून की सही व्याख्या कर जनता को सही निर्णय देना है | यह सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में मूक पशुओं पर किसी भी प्रकार का अत्याचार करना पाप माना गया है | एक तरफ़ केंद्र सरकार भारतीय संस्कृति और परंपरा की दुहाई देती फिरती है वहीं दूसरी तरफ़ जल्लीकट्टू.(सांड को उकसाकर लडवाने का क्रूर खेल,जिसमें सांड के विशेष अंगों पर लाल मिर्च व पेट्रोल लगाकर उन्हे भड़काया जाता है ) जैसे खेल पर से प्रतिबंध हटाकर अपने दोहरे चरित्र को उजागर करती है | गोमांस के मुद्दे पर हो हल्ला करने वाले यदि जल्लीकट्टू जैसे क्रूर व भयानक खेल पर मनोरंजन के नाम पर मौन रहेंगे तो मजबूरन अदालतों को अपनी दखल देनी ही पडेगी | 

https://youtu.be/0EHof3pXp38