"पोर्न,अश्लीलता और निजी स्वतन्त्रता'' --उत्कर्ष श्रीवास्तव


                                                  "पोर्न,अश्लीलता और निजी स्वतन्त्रता''

 देश में पोर्न साइटों के ऊपर प्रतिबन्ध लगने से समाज की निजी स्वतन्त्रता पर बहुत बड़ा आघात हो गया और इस प्रतिबन्ध को हटवाने के लिये देश के तथाकथित सभ्य समाज के लोगों ने एकजुट हो पोर्न पर लगे प्रतिबन्ध के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी और अन्ततः सफ़ल भी हुये। कुछ स्वघोषित बुद्धजीवियों ने अश्लीलता व नंगापन के ऊपर लगने वाले इस प्रतिबन्ध को निजी स्वतन्त्रता का हनन करार दे दिया और कुतर्को के जरिये आम जनभावना की दुहाई देने लगे। प्रश्न यह उठता है कि हमारे समाज की निजी स्वतन्त्रता पोर्न साइटों एवं अश्लील चलचित्रों पर आकर क्यों ठहर जाती है? क्या बन्द कमरे में अश्लीलता,फ़ूहडपन व कुदृष्टि ही हमारे समाज कि निजी स्वतन्त्रता को परिभाषित करती है? पोर्न साइटों के पक्ष में लामबन्द हुय़े तथाकथित बुद्धजीवियों को यह नही पता कि अश्लील दृश्य देखने के बाद व्यक्ति का मन  मस्तिष्क हिंसा व दुष्कर्म करने को प्रेरित हो जाता है । ना जाने कितने बलात्कारियों ने पूछताछ के बाद स्वयं ये स्वीकार किया है की पोर्न देखने के बाद ही उनकी इच्छा दुष्कर्म करने की हुई थी । और अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि अश्लील दृश्य लगातार देखने के बाद ही व्यक्ति में यौन हिंसा करने की प्रवृत्ति पनपती है।
 पोर्न साइटें बन्द होने से यदि लोगों की निजी स्वतन्त्रता पर आघात हो रहा है तो फ़िर बन्द  कमरों  में पोर्न फ़िल्में(ब्लू फ़िल्में) देखकर यौन हिंसा व बलात्कार करने वालों को दोषी क्यों मान लिया जाता है? यदि बन्द कमरों में पोर्न देखना सही है तो फ़िर बन्द कमरों मे हुई यौन हिंसा गलत क्यों है ?




-उत्कर्ष श्रीवास्तव

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